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समाधि लेख / भारत भूषण अग्रवाल
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 22 अक्टूबर 2012 का अवतरण
रस तो अनंत था, अंजुरी भर ही पिया,
जी में वसंत था, एक फूल ही दिया।
मिटने के दिन आज मुझको यह सोच है,
कैसे बडे युग में कैसा छोटा जीवन जिया।