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पींक-पींक बज रही पींपाटी / सत्यनारायण सोनी

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पींक-पींक बज रही पींपाटी,
सुनूं तो ध्यान से
कुल्फी का स्वाद घुल रहा कानों में।
पींक-पींक बज रही पींपाटी
कुल्फी वाले की।

श्रम-संगीत बज रहा
कानों से मानो दिख रहा-
शीतलता बांटने को आतुर
कुल्फी बनाते
फैक्टरियों में पसीना बहाते
कारीगरों का दरसाव
और पांच कोस दूर से
साइकिल पर पेटी लाद
हांफता, पैडल मारता
लू के थपेड़ों से लड़ता, भिड़ता
पसीना पौंछता आता
फिर गलियों में घूम-घूम
कुल्फी बेचता किशोर।

सुनो गौर से-
पींक-पींक बज रही पींपाटी
वह आ रही
गुजर रही तुम्हारी गली से।

2000