भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खेजड़ा / सत्यनारायण सोनी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 26 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यनारायण सोनी |संग्रह=कवि होने...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
एक अकेला
ठूंठ खड़ा
खेजड़ा
निर्जन मरुथल में।

सूखें फोग
खींप
पर अटल तपस्वी-सा
अड़ा
खड़ा है
लिए आशाएं मन में-
गरजेंगे, बरसेंगे
घन
फूटेंगी कोंपलें
हर्षित होगा फिर से
जन-जन।

1990