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अपनी भाषा के प्रति-2 / सत्यनारायण सोनी
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दुनिया की तमाम भाषाओं के
संरक्षण के हामी तुम
देश हित की दुहाई देकर
मेरी भाषा का बलिदान मांगते हो!
जानते हो-
यह असल में देश का ही नहीं
सृष्टि का सबसे बड़ा अहित है।
बगीचे की शोभा
विविध रंग-सुगंध के फूलों से होती है।
हम अपनी भाषा का फूल
मुरझाने नहीं देंगे
और तुम इसका अंत उडीक रहे हो?
देश का भी तो कुछ फर्ज होगा
मेरी भाषा के प्रति
क्या यह मेरे देश की भाषा नहीं?
2012