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जब सावन पास आ गया / कालिदास

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प्रत्‍यासन्‍ने नभसि दयिताजीवितालम्‍बनार्थी
      जीमूतेन स्‍वकुशलमयीं हारयिष्‍यन्‍प्रवृत्तिम्।
स प्रत्‍यग्रै: कुटजकुसुमै: कल्पितार्घाय तस्‍मै
      प्रीत: प्रीतिप्रमुखवचनं स्‍वागतं व्‍याजहार।।

जब सावन पास आ गया, तब निज प्रिया
के प्राणों को सहारा देने की इच्‍छा से उसने
मेघ द्वारा अपना कुशल-सन्‍देश भेजना चाहा।
फिर, टटके खिले कुटज के फूलों का
अर्घ्‍य देकर उसने गदगद हो प्रीति-भरे
वचनों से उसका स्‍वागत किया।