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जो सन्तप्त हैं / कालिदास
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संतप्तानां त्वमसि शरणं तत्पयोद! प्रियाया:
संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य।
गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां
बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौतह्मर्म्या ।।
जो सन्तप्त हैं, है मेघ! तुम उनके रक्षक
हो। इसलिए कुबेर के क्रोधवश विरही बने
हुए मेरे सन्देश को प्रिया के पास पहुँचाओ।
यक्षपतियों की अलका नामक प्रसिद्ध
पुरी में तुम्हें जाना है, जहाँ बाहरी उद्यान में
बैठे हुए शिव के मस्तक से छिटकती हुई
चाँदनी उसके भवनों को धवलित करती है।