भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विरह के दिन गिनने में संलग्न / कालिदास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 27 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)
|
तां चावश्यं दिवसगणनातत्परामेकपत्नी-
पव्यापन्नामविहतगतिर्द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम्।
आशाबन्ध: कुसुमसदृशं प्रायशो ह्यङ्गनानां
सद्य:पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि।।
विरह के दिन गिनने में संलग्न, और मेरी
बाट देखते हुए जीवित, अपनी उस पतिव्रता
भौजाई को, हे मेघ, रुके बिना पहुँचकर तुम
अवश्य देखना।
नारियों के फूल की तरह सुकुमार प्रेम-
भरे हृदय को आशा का बन्धन विरह में
टूटकर अकस्मात बिखर जाने से प्राय: रोके
रहता है।