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पके फलों से दिपते हुए जंगली आमवृक्ष / कालिदास
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छन्नोपान्त: परिणतफलद्योतिभि: काननाम्रै-
स्त्वय्यरूढे शिखरमचल: स्निग्धवेणीसवर्णे।
नूनं यास्यत्यमरमिथुनप्रेक्षणीयामवस्थां
मध्ये श्याम: स्तन इव भुव: शेषविस्तारपाण्डु:।।
पके फलों से दिपते हुए जंगली आमवृक्ष
जिसके चारों ओर लगे हैं, उस पर्वत की
चोटी पर जब तुम चिकनी वेणी की तरह
काले रंग से घिर आओगे, तो उसकी शोभा
देव-दम्पतियों के देखने योग्य ऐसी होगी
जैसे बीच में साँवला और सब ओर से
पीला पृथ्वी का स्तन उठा हुआ हो।