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हे मेघ, तुम निकट आए / कालिदास

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पाण्‍डुच्‍छायोपवनवृतय: केतकै: सूचिभिन्‍नै-
     नींडारम्‍भैर्गृ ह‍बलिभुजामाकुलग्रामचैत्‍या:।
त्‍वय्यासन्‍ने परिणतफलश्‍यामजम्‍बूवनान्‍ता:
     संपत्‍स्‍यन्‍ते कतिपयदिनस्‍थायिहंसा दशार्णा:।।

हे मेघ, तुम निकट आए कि दशार्ण देश में
उपवनों की कटीली रौंसों पर केतकी के
पौधों की नुकीली बालों से हरियाली छा
जाएगी, घरों में आ-आकर रामग्रास खानेवाले
कौवों द्वारा घोंसले रखने से गाँवों के वृक्षों
पर चहल-पहल दिखाई देने लगेगी, और
पके फलों से काले भौंराले जामुन के वन
सुहावने लगने लगेंगे। तब हंस वहाँ कुछ ही
दिनों के मेहमान रह जाएँगे।