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कौरवों और पांडवों के प्रति समान स्‍नेह / कालिदास

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हित्‍वा हालामभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्का
     बन्‍धुप्रीत्‍या समरविमुखो लाग्‍ड़ली या: सिषेवे।
कृत्‍वा तासामभिगममपां सौम्‍य! सारस्‍वतीना-
     मन्‍त: शुद्धस्‍त्‍वमपि भविता वर्णमात्रेण कृष्‍ण:।।

कौरवों और पांडवों के प्रति समान स्‍नेह के
कारण युध्द से मुँह मोड़कर बलराम जी
मन-चाहते स्‍वादवाली उस हाला को, जिसे
रेवती अपने नेत्रों की परछाईं डालकर स्वयं
पिलाती थीं, छोड़कर सरस्‍वती के जिन जलों
का सेवन करने के लिए चले गए थे, तुम
भी जब उनका पान करोगे, तो अन्‍त:करण
से शुद्ध बन जाओगे, केवल बाहरी रंग ही
साँवला दिखाई देगा।