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वहाँ कैलास पर सुर-युवतियाँ / कालिदास

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तत्रावश्‍यं वलयकुलिशोद्धट्टनोदगीर्णतोयं
     नेष्‍यन्ति त्‍वां सुरयुवतयो यन्‍त्रधारागृहत्‍वम्।
ताभ्‍यो भोक्षस्‍तव यदि सखे! धर्मलब्‍धस्‍य न स्‍यात्
     क्रीडालोला: श्रवणपरुषैर्गर्जितैर्भाययेस्‍ता:।।

वहाँ कैलास पर सुर-युवतियाँ जड़ाऊ कंगन
में लगे हुए हीरों की चोट से बर्फ के बाहरी
आवरण को छेदकर जल की फुहारें उत्‍पन्‍न
करके तुम्‍हारा फुहारा बना लेंगी। हे सखे,
धूप में तुम्‍हारे साथ जल-क्रीड़ा में निरत
उनसे यदि शीघ्र न छूट सको तो अपने
गर्णभेदी गर्जन से उन्‍हें डरपा देना।