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एक चिट्ठी लिखनी है मुझे / पवन करण

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एक चिट्ठी लिखनी है मुझे
काग़ज़ की नावों के नाम
जिन्हें बरसात में
बचपन बनाता था

बहुत दिन हुए उनसे
मेरी मुलाक़ात नहीं हुई
एक ख़बर भेजनी है मुझे
घूमती फिरकनियों के पास

थिरकते हुए जो सबका
मन मोह लेती थीं,
दिन हुए, मैंने उन्हें
धरती पर झूमते नहीं देखा

एक दिन मिलना हे मुझे
उन गुड़ियों से जिन्हें आखातीज
पर ब्याहा जाता था
साल गुज़रे मैंने किसी गुड्डे को

सेहरा बाँधे नहीं देखा
एक दिन रहना है मुझे
उन गलियों में
जिनकी धूल में अँटे

खिलखिल करते थे
बरस बीते मैंने उनमें
कंचों की टकराहट नहीं सुनी