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भरोसा / पवन करण
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भरोसा
अब भी मौज़ूद है दुनिया में
नमक की तरह अब भी
पेड़ो के भरोसे पक्षी
सब कुछ छोड़ जाते हैं
बसंत के भरोसे वृक्ष
बिल्कुल रीत जाते हैं
पतवारों के भरोसे नाव
सँकट लाँघ जाती है
बरसात के भरोसे बीज
धरती में समा जाते हैं
अनजान पुरुष के पीछे
सदा के लिए स्त्री चल देती है