भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भरोसा / पवन करण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> भरोसा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भरोसा
अब भी मौज़ूद है दुनिया में
नमक की तरह अब भी
पेड़ो के भरोसे पक्षी
सब कुछ छोड़ जाते हैं

बसंत के भरोसे वृक्ष
बिल्कुल रीत जाते हैं
पतवारों के भरोसे नाव
सँकट लाँघ जाती है

बरसात के भरोसे बीज
धरती में समा जाते हैं
अनजान पुरुष के पीछे
सदा के लिए स्त्री चल देती है