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सगुणोपासना / सूरदास
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अबिगत-गति कछु कहत न आवै ।
ज्यौं गूँगै मीठे फल कौ रस अंतरगत हीं भावै ।
परम स्वाद सबही सु निरंतर अमित तोष उपजावै ।
मन-बानी कौं अगम अगोचर, सो जानै जो पावै ।
रूप-रेख-गुन-जाति जुगति-बिनु निरालंब कित धावै ।
सब विधि अगम बिचारहिं तातैं सूर सगुन -पद गावै ॥1॥