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तुम छत पर मत टहलो / विमल राजस्थानी

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सोलह श्रृंगार किये तुम छत पर मत टहलो
मौसम की नियत बदल गयी तो क्या होगा ?
सज-धज कर तुम यों चैराहों से मत गुजरो
मनचली तबीयत मचल गयी तो क्या होगा ?

मौसम का भला भरोसा क्या
पल में पाला, पल में बादल
क्षण भर मे दाहक रवि-किरणें
तो निमिष मात्र में जल-ही-जल
आँधी-अंधड़-तूफानों में बरगद तक ढह गिर जाते हैं
ये आदर्शों की चट्टानें यदि पिघल गयीं तो क्या होगा ?

चाँदनी न मुक्त हस्त बाँटो
शशि-मुख पर बादल छाने दो
मनमोहन को कदम्ब पर ही-
रहकर बाँसुरी बजाने दो
चुभती चंचल चितवन, अरूणिम अधरों की यह दाहक मुस्की
मन की थिरकन कपोल-गहृर में फिसल गयी तो क्या होगा ?

इन अरूण एडि़यो का सुहास
दूबों की फुनगी ही झेले
कोमल-लम्बी-पतली उँगली-
तितनी से, कलियों से खेले
यह कोलतार से पुती गैल पद-चाप मधुर क्या झेलेगी
पैंजनियों की रून-झुन सुन-सुन यह दहल गयी तो क्या होगा ?

दुनिया की खोजी नज़रो में
चुभ जाना अच्छी बात नहीं
इस लू-लपटों के मौसम में
यदि हो रस की बरसात कहीं
मखमली जि़स्म को छू-छूकर यह हवा दवा बन जायेगी
बीमार तबीयत जगवालों की बहल गयी तो क्या होगा ?