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ओ जनम-जनम के सहचर / विमल राजस्थानी

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ओ जनम-जनम के सहचर मन !
कुछ और तपो, निखरो साथी !

इस असफलता की कल्प-लता
को केवल आँसू काटेंगे
छौने सुकुमार वेदना के ही
तो अपना दुख बाँटेंगे
भुजबल से लहरें चीर, तरी-
तारो तट पर उतरो साथी !

प्रिय कौन, कहाँ से आयेगा
इस दुनिया को बतलाना क्या ?
जग ने कब समझा, समझेगा
आँखों का भर-भर आना क्या ?
जीवन को अश्रु बनाकर तुम
प्रिय के पथ पर बिखरो साथी !

ओ जनम-जनम के सहचर मन !
कुछ और तपो, निखरो, साथी !