तुम बदलोगे-युग बदलेगा / विमल राजस्थानी
तनिक बदल कर तुम तो देखो
आँगन-आँगन सुख मचलेगा
तुम बदलोगे, युग बदलेगा
जन-जन के समूह को ही तो
हम समाज कहते आये हैं
भले देश हों भिन्न, धरा है-
एक, जहाँ रहते आये हैं
काली चमड़ी, गोरी चमड़ी
तो ऋतुओं की देन सहज हैं
हँसना-रोना, सर्दी-गर्मी,
एक साथ सहते आये हैं
कथनी-करनी के अंतर को
पहले हमें मिटाना होगा
मानव-मानव के अन्तर का
घातक भेद हटाना होगा
तभी हमारे द्वारे-द्वारे
सुख-समृद्धि का कमल खिलेगा
तुम बदलोगे-युग बदलेगा
सब कानून निरर्थक होंगे
सैनिक बंदूकें फेंकेंगे
चूल्हा होगा एक, तवे पर
हम मिल-जुल रोटी सेकेंगे
बाँट-चूँट कर हम खायेंगे
साँझ ढले घर को आयेंगे
‘सारा विश्व हमारा होगा’
सपने में भी हम गायेंगे
नियम सौर-मण्डल का साधे
अनुशासन मानव गह लेगा
तुम बदलोगे-युग बदलेगा
तनिक बदल कर तुम तो देखो
आँगन-आँगन सुख मचलेगा
मस्जिद नहीं शिवाला होगा
सबका एक निवाला होगा
नहीं घरों में ताला होगा
कहीं न गड़बड़झाला होगा
चारों ओर उजाला होगा
कोई न बैठा ठाला होगा
ढूँढ़े नहीं कहीं धरती पर
आफत का परकाला होगा
अन्यायी होगा न किसी-
अन्यायी का तब दिल दहलेगा
तुम बदलोगे, युग बदलेगा