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तिमिर के पन्ने / विमल राजस्थानी

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लाख झंझावात आयें, लाख काले मेघ छायें
वर्तिका बलती रहेगी, दीप जलता ही रहेगा
आत्मा में पले प्रतिभा-स्त्रोत से यह
अनवरत पाता रहेगा स्नहे धारा
प्राप्त कर गंतव्य अपना विभा-मंडित
धन्य होगा एक दिन यह दिशाहारा
लाख दुनियाँ उँगलियों की पोर पकड़े
तिमिर के पन्ने निरन्तर यह पलटता ही रहेगा
जो तिमिर को चीर देता रोशनी है
आदमीयत का वही बिरला धनी है
जो जले खुदए दूसरे को दृष्टि दे.दे
अमरता उसकी रही चिर संगिनी है
नयन डाले ही रहेगा नयन में शशि-सूर्य के वह
रात आती ही रहेगी, दिवस ढलता ही रहेगा