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स्मृति-1 / गोविन्द माथुर

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ठहरता नहीं कोई पल
ठहरता नहीं बहता हुआ जल
ठहरता नहीं पवन

लौट कर नहीं आते
पल, जल और पवन

ठहरे रहते हैं शहर
शहरों में ठहरी रहती हैं इमारतें
इमारतों में ठहरी स्मृतियाँ
स्मृतियों में ठहरी रहती है उम्र
उम्र में ठहरा रहता है प्रेम

एक दिन जर्जर होकर
ढह जाएँगी इमारतें
रेत में दब जाएँगें शहर
जीवित रहेंगी स्मृतियाँ
स्मृतियों में जीवित रहेगा प्रेम

प्रेम में जीवित रहेगें
पल, जल और पवन