भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरे वतन, तुझको नमन / विमल राजस्थानी
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 6 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमल राजस्थानी |संग्रह=फूल और अंग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरे वतन ! तुझको नमन !!
अहले वतन ! तुमको नमन !!
शत-शत नमन!!
(1)
सिर पर बरफ का ताज है
जन्नत को तुम पर नाज है
क्या बाँकपन, अंदाज है
तुम पर निछावर है भुवन
मेरे वतन ! तुमको नमन !!
अहले वतन ! तुमको नमन !!
शत-शत नमन!!
(2)
चंदन-सी तेरी धूल है
काँटा भी तेरा फूल है
तू सभ्यता का मूल है
तू ज्ञान की पहली किरण
मेरे वतन ! तुमको नमन !!
अहले वतन ! तुमको नमन !!
शत-शत नमन!!
(2)
गंगा-जमुना गल हार हैं
झरने मधुर झंकार हैं
ऋतुएँ छहों जयकार है
सागर पखारे युग-चरन
मेरे वतन ! तुमको नमन !!
अहले वतन ! तुमको नमन !!
शत-शत नमन!!
(4)
गीता तू ही, तू कुरान है
गुरू-ग्रन्थ है, ईमान है
तू ही मेरा भगवान है
तू ही है जप-तप औ‘ हवन
मेरे वतन ! तुमको नमन !!
अहले वतन ! तुमको नमन !!
शत-शत नमन!!