भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 7 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=इस पार उस प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दुख
नशा है, लत है
उसका सोग
मनाना अच्छा लगता है
वह बहुत अपना होता हे
दुख को भूलना
प्रिय मित्र से
बिछड़ने जैसा है
बिछड़ने के बाद भी
अकसर याद आता हे
उसकी मीठी तन्द्रा
तन - मन को
गुनगुने आलस से भर देती है
उससे उबरने की ताकत
बिरले में ही होती हे
यह सच है
फिर भी
मेरे बंधु
उठो, जागो
कम से कम
तुम तो
यह नशा करना छोड़ दो