भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बियाबान जंगल में / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:59, 10 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता गुप्ता |संग्रह=इस पार उस प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बियाबान जंगल में
सालों भटकने के बाद
मुझे वह पेड़ मिल ही गया
जिस पर
मुक्ति का फूल
खिलता है
उफ
यह अकेला फूल
किस कदर
सम्मोहक है
इसकी खुषबू
कभी
खतम नहीं होती
यह मुरझाता भी नहीं
इसके चारों ओर
सुनहरा पीला प्रकाश
बिखरा रहता है
अंधेरे में भी
नन्हे दीये - सा
टिमटिमाता है
इसकी रोशनी से
मन में
उजाला है मेरे