ईश्वर की हिंसा क्षमा करो / विमल राजस्थानी
(बापू की हत्या पर)
रोती धरती, रोता अंबर, रो-रो पुकारता है त्रिभुवन
तुम कहाँ गये भारत के धन !
चालीस कोटि प्राणों के धन !
चालीस कोटि जन के जीवन !
रो-रो पुकारता है भारत
ओ भूखों के भगवान कहाँ ?
ओ महामहिम ! ओ तपः पूत !!
यह असमय ही प्रस्थान कहाँ ?
तुम गये कहाँ, किस ओर कोटि-
प्राणों की ममता छोड़ कहाँ ?
क्रन्दनरत इन माँ-बहनों से
तुम चले आज मुँह मोड़ कहाँ ?
रोते-बिललाते कोटि-कोटि
बच्चों से नाता तोड़ कहाँ ?
तुम चले हमारे स्नेह भरे-
बोलो, मंगल-घट फोड़ कहाँ ?
ओ अमर अहिंसा के प्रतीक !
सुख-शान्ति-सत्य के दीवाने !
एकता-दीप पर न्यौछावर-
हो जाने वाले परवाने
ओ मुट्ठी भर हड्डियाँ देश-पद पर करने वाले अर्पण
जीवन भर जल-जलकर प्रकाश फैलानेवाले ज्योति-सुमन
असमय यह कैसा-स्वर्ग-गमन ?
बापू ! ओ प्यारे बापू !!
भारतवर्ष तुम्हारा रोता है
हत्यारे के मस्तक पर चढ़ आदर्श तुम्हारा रोता है
ओ विश्व-बन्धु ! शुभ कर्मो का-
परिणाम यही क्यों होता है ?
क्यों अपना ही अपनों के लोहू-
में उंगलियाँ भिंगोता है
जिनके हित तुमने जीवन-भर
यातना सही, दुःख-दर्द सहे
जिनके हित-चिंतन में निशि दिन
तुम तन-मन-धन से लीन रहे
उन अधम अभागों ने हँसकर
प्राणों का पंछी छिन लिया
लोहू से रंगकर हाथ राष्ट्र-
का टूक-टूक कर दिया हिया
‘ईसा’ की भाँति तुम्हें भी तो अपनो से ही हां ! मिला मरण
प्यारे स्वदेश के लिए विहंस कर किया मृत्यु का आलिंगन
है धन्य तुम्हारा अग्नि-चरण
जिनको मँझधारों से उबार
था दिया किनारे पर उतार
उस नैया के ही लोगों ने
हंसकर मांझी को दिया मार
जिस महापुरूष ने मानव को
अपने प्राणों का दिया दान
जिसकी आँखों में एक रहे
हिन्दू-ईसाई-मुसलमान
ओ अविवेकी ‘गोडसे’ ! बोल
उस युगाधीश के प्राण छीन
इन कोटि-कोटि इन्सानों का
क्यांे बोल लिया भगवान छीन
दे देख हिमालय का आनन
भी आज शर्म से लाल हुआ
उस निधि को खो भारत ही-
क्या सारा भूतल कंगाल हुआ
अब कौन यहाँ जो रोकेगा इन दुपदाओं का चीर-हरण
ओ मोहन ! कौन सुनेगा अब इन दीप मनुष्यों का क्रंदन
हे युग के धन ! हे जन-जीवन !!!
सच है, तुम इनसे छूट गये
सुख-स्वप्न हमारे टूट गये
पर रक्त-पिपासित मानव को
दे शांति-सुधा दो घूँट गये
तुम गये किन्तु इस भूतल पर-
आदर्श तुम्हारा फैला है
क्या है कि अभागे मानव का
अन्तर अब भी मटमैला है
यह देश तुम्हारे पद-चिह्नों पर
निश्चय चला करेगा ही
शुचि सत्य-अहिंसा का अखंड
छवि-दीपक जला करेगा ही
हे बापू ! उस हत्यारे को
ईश्वर की हिंसा क्षमा करे
हैं भीख दया की माँग रहे
चालीस कोटि दृग अश्रु-भरे
हे समदर्शी भगवान् ! स्वर्ग से दो हमको आशीष-वचन
छिटकायें तीनों लोकों में हम ‘रामराज्य’ की ज्योति-किरण
हे ज्योतिपुंज ! हे भव-भूषण !!
लो कोटि-कोटि जन का वंदन
युग-युग तक युग का महामिलन
लो पद-पूजन, हे राष्ट्र सुमन !