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बंदूकें बोना / विमल राजस्थानी

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प्रचुर अन्न है, अब खेतों में बंदूकें बोना
दोनों हाथ कटे मइया के, धड़ तो मत खोना

मानसरोवर छिना, छिना कैलास-
शेष कश्मीर है
उसको पाने को दुश्मन फिर-
आकुल, विकल, अधीर है

दो-दो बार समर में हारा
फिर भी जीवित है हत्यारा
हिम्मत तो देखो पिद्दी की
फिर सिंहों को है ललकारा

सीमा पर तैनात जवानों-
का लोहू फिर खौल रहा है
क्रुद्ध देश का बच्चा-बच्चा-
गरज-गरज कर बोल रहा है

रक्त-पंक में सने बूँट, चल सतलज में धोना
एटम तो भारत के बच्चों का आधुनिक खिलौना

करो अनसुनी सीख, सहन-
करने की यह तो चाल है
भीतर-भीतर मात दिलाने-
को ‘कोई’ बेहाल है

नाम मिटाना है नक्शे से-
नरभक्षी हैवान का
लहराना है आन-बान से
झण्डा हिन्दुस्तान का

मानसरोवर वापस लेंगे
लेंगे हम कैलास भी
रोक न पायेंगे यदि पथ में-
पवन मिलें उनचास भी

नरमुण्डों से समर-भूमि का पाटें कोना-कोना
शिशुओं के माथे रिपु-शोणित का रक्ताभ डिठौना