भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभिनव कोमल सुन्दर पात / विद्यापति

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 10 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} अभिनव कोमल सुन्दर पात।<br> सगर कानन पहिरल प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अभिनव कोमल सुन्दर पात।
सगर कानन पहिरल पट रात।
मलय-पवन डोलय बहु भांति
अपन कुसुम रसे अपनहि माति।।
देखि-देखि माधव मन हुलसंत।
बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।।
कोकिल बोलाम साहर भार।
मदन पाओल जग नव अधिकार।।
पाइक मधुकर कर मधु पान।
भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।।
दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि।
रास बुझावय मुदित मुरारि।
भनइ विद्यापति ई रस गाव।
राधा-माधव अभिनव भाव।।