Last modified on 10 अक्टूबर 2007, at 01:09

आजु दोखिअ सखि बड़ / विद्यापति

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 10 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल ता...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल तारो।
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो।
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा।
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा।।
अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला।
बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला।।
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे।
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे।।