नहीं, पेट में नहीं किसी के कस्तूरी 
दंतकथा सुनकर, हिरना मदमाते हैं ।
विश्वामित्र, वशिष्ठ पहिनकर 
चोला चोखा है 
शब्दों में सतयुग की ख़ुशबू 
समझो धोखा है 
नागलोक है जीभ देहरी के भीतर 
बाहर बन्दनवार ज़रूर सजाते हैं ।
किन्तु-परन्तु साथ रखती 
वाणी मंगलवारी 
लोहा कभी नहीं छूते हैं ये पारसधारी 
कल्पवृक्ष कच्चे धागे में कैद किया 
अंगूरी पीते अमरौती खाते हैं । 
अनहद-अंतर्नाद कुछ नहीं 
म्यूजिक सिस्टम है 
मंच विडियो है तब तक 
कुण्डलिनी में दम है 
ले दे कर इज़्ज़त जो है सो बनी हुई 
परिचय में पहले पदनाम बताते हैं ।