Last modified on 10 अक्टूबर 2007, at 01:15

जौवन रतन अछल दिन चारि / विद्यापति

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 10 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} जौवन रतन अछल दिन चारि।<br> से देखि आदर कमल म...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जौवन रतन अछल दिन चारि।
से देखि आदर कमल मुरारि।।
आवे भेल झाल कुसुम रस छूछ।
बारि बिहून सर केओ नहि पूछ।।
हमर ए विनीत कहब सखि राम।
सुपुरुष नेह अनत नहि होय।।
जावे से धन रह अपना हाथ।
ताबे से आदर कर संग-साथ।।
धनिकक आदर सबतह होय।
निरधन बापुर पूछ नहि कोय।।
भनइ विद्यापति राखब सील।
जओ जग जिबिए नब ओनिधि भील।।