तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो / नीलोत्पल
तुम जो छत पर हाथ
टिकाए खड़ी हो
तुम्हारे हाथ और बाल ढँके हैं
शाल के भीतर
धूप सेंकते हुए तुम्हारा चेहरा
तपता है
अलाव में सेंके हुए अनाज की तरह
उस वक़्त मैं देखता हूँ तुम्हें
तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो
ना ही हमनें मिलकर सपने देखे हैं
(हम क़ैद हैं अपने-अपने सीखचों में )
मैं देखता हूँ तुम्हारी आँखों में
गुलमोहर की शांत झरती पत्तियाँ
तुम एक गहरी लम्बीं साँस लेती हो
तुम्हारी उदासी में ढेरों पक्षी विदा लेते हैं
लेकिन हमनें कोई विदा नहीं ली अब तक
हम नहीं जानते इस बारे में
हम अस्पष्ट हैं
तुम जो मेरी प्रेमिका नहीं हो
मैंने तुम्हें कभी कोई ख़त नहीं लिखा
लेकिन हमारी आँखें जानती हैं
कि हमनें सदियों प्रतीक्षा की एक दूसरे की
हमनें वादा नहीं लिया
लेकिन मैं देखता हूँ
शाम का सूरज तुम्हारे चेहरे पर चमकता है
लिखता है हमारी अस्पष्ट कहानी को
अपने महान अंतरालों के बीच