भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विद्याधर / पुरुषोत्तम अग्रवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:37, 20 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अग्रवाल |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पुरानी किताब पलटते पलटते
पड़ी एकाएक निग़ाह
ओह !
यह तो पंख है
उसी सुनहरी तितली का
जिसके पीछे बरसों दौड़ा किया था
मैं ।
एक पल पकडी ही गई
तितली
आह !
कैसी थरथराती छुअन
कैसे चितकबरे धब्बे सुनहरे पंख पर
जैसे धरती से फूटा इन्द्रधनुष ।
क़िताब, कापी के पन्नों के बीच दबा
तितली का पंख विद्या देता है
बताया गया था मुझे ।
पंख नुचा, तितली मरी
मैं बना विद्याधर !