भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कभी तुम इतने जीवित / अनिरुद्ध उमट

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 20 जनवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> द...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन बीते मज़ाक भूले

लिखी बहलाने को
कविता
गाई लोरी
किया शवासन

स्त्री संग यूँ सोया
कि न सोया
श्मसान में यूँ रोया
कि न रोया

अभी-अभी तुम्हारे साथ
अभी-अभी मैं नहीं रहा

कभी तुम इतने जीवित
कि तुम ही तुम नहीं

अब बहुत हुआ मज़ाक
भूले जिसे दिन बीते

लौटना चाहा तो देखा
अपनी राख
हो चुकी
ठंडी बहुत

धुँआ रहा
जिसमें एक दाँत
मज़ाक करता