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कभी तुम इतने जीवित / अनिरुद्ध उमट
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दिन बीते मज़ाक भूले
लिखी बहलाने को
कविता
गाई लोरी
किया शवासन
स्त्री संग यूँ सोया
कि न सोया
श्मसान में यूँ रोया
कि न रोया
अभी-अभी तुम्हारे साथ
अभी-अभी मैं नहीं रहा
कभी तुम इतने जीवित
कि तुम ही तुम नहीं
अब बहुत हुआ मज़ाक
भूले जिसे दिन बीते
लौटना चाहा तो देखा
अपनी राख
हो चुकी
ठंडी बहुत
धुँआ रहा
जिसमें एक दाँत
मज़ाक करता