भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
1 गंगा जी तेरे खेत मैं.../ हरियाणवी
Kavita Kosh से
Rajeev090 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:56, 30 जनवरी 2013 का अवतरण ('<poem>गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे चयार कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही ।
शिवजी के करमंडल कै, विष्णु जी का लाग्या पैर।
पवन पवित्र अमृत बणकै, पर्बत पै गई थी ठहर।।
भागीरथ नै तप कर राख्या, खोद कै ले आया नहर।।।
साठ हज़ार सगर के बेटे, जो मुक्ति का पागे धाम।
अयोध्या कै गोरै आकै, गंगा जी धराया नाम।।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनो, पूजा करते सुबह शाम ।।।
सब दुनिया तेरे हेत मैं, किसी हो रही जय जयकार .... कन्हिया झूलते संग रुक्मण झूल रही~~~~