भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाहाहाहा हाहाहाहा / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:08, 17 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश |संग्रह=एक सौ एक बाल कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाय घर पर आना जी
आकर रोटी खाना जी

हमको दूध पिलाना जी
अपनी पूँछ हिलाना जी

अपने कान हिलाना जी
मक्खी खूब उड़ाना जी

हमको खूब हँसाना जी
हाहाहाहा हाहाहाहा हाहाहा।