भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुखडानी माया लागी रे / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 11 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} राग काफी-ताल द्रुत दीपचंदी मुखडानी माया ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग काफी-ताल द्रुत दीपचंदी


मुखडानी माया लागी रे, मोहन प्यारा।
मुघडुं में जियुं तारूं, सव जग थयुं खारूं, मन मारूं रह्युं न्यारूं रे।
संसारीनुं सुख एबुं, झांझवानां नीर जेवुं, तेने तुच्छ करी फरीए रे।
मीराबाई बलिहारी, आशा मने एक तारी, हवे हुं तो बड़भागी रे॥


शब्दार्थ :- माया =लगन, प्रीति। जोयुं =देखा। तारूं =तेरा। थयुं खारूं,अर्थात नीरस हो गया। एवुं = ऐसा। झांझवानाम =मृग-तृष्णा। जेवुं = जैसा। फरीए =घूम रही हूं। हवे =अब।