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मौसम-मौसम में / राजकुमार कुंभज
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मौसम-मौसम में
भूलते जाने की भी हद होती है एक
लेकिन, वियोग सुनता है आहट हर कोई
और हो जाता है समसामयिक चौकन्ना
बावजूद इसके कि सब कुछ, सब कुछ
ख़त्म हो जाएगा एक दिन
मैं जागता हूँ
एक अल्पकालीन निद्रा के बाद
मैं हँसता हूँ
एक अल्पकालीन दुःख के बाद
मैं लड़ता हूँ
एक अल्पकालीन हार के बाद
विजय मेरी है, जय मेरी है
सब कुछ में, कुछ न कुछ, बचा लेने में भी
मेरी ही होगी जय-विजय
मौसम-मौसम में
रचनाकाल : 2012