भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरी सुबह / संज्ञा सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 12 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संज्ञा सिंह |संग्रह=अपने अलावा / स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सुबह होगी
नीम के कुछ फूल होंगे
ज़मीन पर
पत्तियाँ दो चार-चार
इधर-उधर
बिस्तर पर पड़ी होंगी
सुबह होगी
एक फूल गुलाब का
खिला-अधखिला
तुम्हारे पास होगा
तुम्हारे हाथों
एक फूल वाली सुबह
मेरे हाथों में उतर आएगी
सुबह होगी मेरी इस तरह