Last modified on 12 मार्च 2013, at 13:45

रंगों की शोभायात्रा में / दिनकर कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 12 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=उसका रिश्ता ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अमलतास और पलाश ने रचा है ब्रह्मपुत्र के किनारे
रंगों का अनोखा जगत
जहाँ आकाश लाल और पीले रंग में
बँटा हुआ नज़र आता है
जहाँ तीखी धूप में लाल रंग की चुनर
लहराती हुई नज़र आती है

कंक्रीट के जगत की कड़वाहट पर हावी हो गया है
अमलतास का रंग और जेठ के महीने में
शहर के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक
फैलता जाता है जहाँ पलाश की पिचकारी से
बिखरता दिखाई देता है पीला रंग

चाँदी की तरह ब्रह्मपुत्र की जलधारा
नीली रंग की पहाड़ियाँ नारी की तरह
अँगड़ाई लेती हुई नज़र आती है और पल-भर के लिए
भीड़ का सारा शोर ग़ुम हो जाता है
रंगों की शोभायात्रा में बहता चला जाता हूँ ।