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ड्राइंग-रूम में टी० वी० / दिनकर कुमार
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ड्राइँग-रूम में टी० वी० देखती है स्त्री
किरदारों का महँगा पहनावा और जादुई प्रसाधन
स्त्री को लेकर जाता है तिलिस्म के जगत में
जहाँ अधूरे सपने पँख लगाकर उड़ने लगते हैं
ड्राइँग-रूम में टी० वी० देखते हैं बच्चे
विज्ञापनों में परोसे जा रहे चाकलेट, पेय-पदार्थ, खिलौने
बच्चों के मन में जागने लगती हैं आकाँक्षाएँ
पिता की मितव्ययता पर क्रोध आने लगता है बच्चे को
ड्राइँग-रूम में टी० वी० देखता है पुरुष
वह आतंकित होने लगता है अमानवीय ख़बरों,
सुख से अघाई हुई स्त्रियों, असमय ही बालिग हो चुके
बच्चों को किरदारों के रूप में देखकर ।