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सहजता आती नहीं / दिनकर कुमार

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मैं भी आप लोगों की तरह सहज होना चाहता हूँ
चाहकर भी हो नहीं पाता
मरघट में आप लोगों के साथ
उत्सव में शरीक नहीं हो पाता
कितनी सहजता से चलती है
आप लोगों की ज़िन्दगी
सुबह भीमसेन जोशी की भैरवी
सुनते हुए चाय और सैंडविच
अख़बार की सुर्ख़ियाँ
देश पर हल्की-फुल्की चिंता
दोपहर में माया का विस्तार
और माया का संकुचन
शाम को पंडित जसराज का गायन
और अँग्रेज़ी पत्रिकाओं के पृष्ठों पर
मुर्दों की भंगिमाओं का निरीक्षण
चाय की प्याली के साथ
औपचारिक बातचीत
भोजन की मेज़ पर
विटामिन और कैलोरी की सजावट
गुलाम अली की ग़ज़ल के साथ
नींद की बाँहों में समा जाने की प्रक्रिया
किस कदर सहज है
जो सहजता मुझे नहीं आती
क्षमा कीजिएगा
मैं आप लोगों की तरह
नहीं बन सकता सर्द संवेदनशून्य
बुत की तरह ।