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इस राज़ को क्या जानें साहिल के / मुज़फ़्फ़र 'रज़्मी'

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इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई

जाग ऐ मेरे हम-साया ख़्वाबों के तसलसुल<ref>निरन्तरता</ref> से
दीवार से आँगन में अब धूप उतर आई

चलते हुए बादल के साए<ref>परछाई</ref> के तआक़ुब<ref>पीछा करना</ref> में
ये तिश्ना-लबी<ref>प्यास</ref> मुझ को सहराओं<ref>रेगिस्तानों</ref> में ले आई

ये जब्र<ref>ज़ुल्म</ref> भी देखा है तारीख़<ref>इतिहास</ref> की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई

क्या सानेहा<ref>घटना</ref> याद आया ‘रज़्मी’ की तबाही का
क्यूँ आप की नाज़ुक सी आँखों में नमी आई

शब्दार्थ
<references/>