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पहली तारीख़ की कविता / दिनकर कुमार

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विषाद के कन्धे पर
महीने की पहली तारीख़ की कविता में
पिछले महीने का बकाया
अवसाद होता है
समय पर नहीं चुकाए गए
कर्ज़ों की चिन्ता होती है
एक साथ अनगिनत
भावनाओं का
उतार-चढ़ाव होता है

महीने की पहली तारीख़ की कविता में
जीवन की विकृति-सी
परिभाषा होती है
अपनी धाराएँ गँवा देनेवाली
नदियों की करुण पुकार होती है
किसी प्यासे मुसाफ़िर की
थकान होती है
समय की लम्बी आह होती है

महीने की पहली तारीख़ की कविता
रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों की
सूची में तब्दील हो जाती है
गृहस्थी के दबाव से काँपते रहते हैं
समस्त स्नायुतंत्र
मस्तिष्क की कोशिकाओं में
विचारधारा के साथ
अर्थतंत्र के विषाणु का
संघर्ष तेज़ हो जाता है ।