भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास / हिन्दी लोकगीत

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 13 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=हिन्दी }} <...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने बाबा जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।

बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने पापा जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।

बन्ना तो मेरा चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया,
अपने भईया जी के बागों में जाना, नोटों से जेब भराना।
लुटाना समधी के द्वार, चाँद देख शरमाया।
बन्ना तो मेरी चाँदी का गिलास, चाँद देख शरमाया।