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बाग लगाये मधुबन में / हिन्दी लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में,
खुशी का दिन आया है।
बन्नी पूछो बन्ने अपने से, कौन तपस्या तुमने कीनी,
बन्नी तो बड़ी सुन्दर है।
बाबा अपने का हुक्म बजाया, दादी के कहे आज्ञाकारी,
बन्नी तो बड़ी सुन्दर है।
बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में।

बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में,
खुशी का दिन आया है।
बन्नी पूछो बन्ने अपने से, कौन तपस्या तुमने कीनी,
बन्नी तो बड़ी सुन्दर है।
पापा अपने का हुक्म बजाया, मम्मी के कहे आज्ञाकारी,
बन्नी तो बड़ी सुन्दर है।
बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में।

बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में,
खुशी का दिन आया है।
बन्नी पूछो बन्ने अपने से, कौन तपस्या तुमने कीनी,
बन्नी तो बड़ी सुन्दर है।
भईया अपने का हुक्म बजाया, भाभी के कहे आज्ञाकारी,
बनी तो बड़ी सुन्दर है।
बाग लगाये मधुबन में, खिलेंगे फूल मन में।