भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जोगी ढ़ुढ़ण हम गया / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 18 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    जोगी ढ़ुढ़ण हम गया,
    कोई न देखयो रे भाई

(१) एक गूरु दुजो बालको,
    तीजो मस्त दिवानो
    छोटा सा आसण बैठणा
    जोगी आया हो नाही....
    .....जोगी ढ़ुढ़णँ.....

(२) जोगि की झोली जड़ाव की,
    हीरा माणीक भरीया
    जो मांगे उसे दई देणा
    जोगी जमीन आसमानाँ....
    .....जोगी ढ़ुढ़णँ.....

(३) आठ कमल नौ बावड़ी,
    जीन बाग लगाई
    चम्पा चमेली दवणो मोंगरो
    जीनकी परमळ वासँ....
    .....जोगी ढ़ुढ़णँ.....

(४) पान छाई जोगी रावठी,
    फुल सेज बिछाई
    चार दिशा साधु रमी रया
    अंग भभुत लगाईँ....
    .....जोगी ढ़ुढ़णँ.....