Last modified on 19 अप्रैल 2013, at 13:09

अमर कंट निज धाम है / निमाड़ी

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    अमर कंट निज धाम है,
    नीत नंहावण करणा

(१) वासेण जाल से हो निसरी,
    आरे माता करण कुवारी
    कल युग म हो देवी आवियां
    कलू कर थारी सेवा...
    अमर कंट...

(२) बड़े बड़े पर्वत फोड़ के,
    आरे धारा बही रे पैयाला
    कईयेक ऋषि मुनी तप करे
    जल भये रे अपारा...
    अमर कंट...

(३) पैली धड़ ॐकार है,
    ऐली धड़ रे मंन्धाता
    कोट तिरत का हो नावणा
    नहावे नर और नारी...
    अमर कंट...

(४) मंन्धाता के घाट पे,
    आरे पैड़ी लगी रे पचास
    आम साम रे वाण्या हाटड़ी
    दूईरा पड़ रे बजार...
    अमर कंट...