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दया करो म्हारा नाथ / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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दया करो म्हारा नाथ
हुँउ रे गरीब जन ऐकलो
(१) बन म वनस्पति फुलियाँ,
आरे फुलिया डालम डाल
वाही म चन्दन ऐकलो
जाकी निरमल वाँस...
हुँउ रे गरीब...
(२) कई लाख तारा ऊगीयाँ
ऊगीयाँ गगन का मायँ,
वहा म्हारो चन्दाँ ऐकलो
जाकी निर्मल जोत...
हुँउ रे गरीब...
(३) अन्न ही चुगता चुंगी रयाँ,
आरे पंछी पंख पसार
वहा म्हारो हंसो ऐकलो
आरे मोती चुग-चुग खाय…
हुँउ रे गरीब...
(४) कहेत कबीर धर्मराज से,
आरे साहेब सुण लिजै
घट का परदा खोल के
आरे आपणो कर लिजे...
हुँउ रे गरीब...