Last modified on 26 अप्रैल 2013, at 06:59

उसे बदलना ही था / पवन कुमार

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:59, 26 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन कुमार }} {{KKCatNazm}} <poem> उसे बेवफ़ा हो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उसे
बेवफ़ा होना ही था,
मुझसे
सिलसिला तोड़ना ही था
कोई राब्ता रखना ही न था,
दो क’दम साथ चलना भी न था
एक रोज उसे बदल ही जाना था
और
एक रोज’ मुझे संभल ही जाना था।
वफ़ा की राह में वो
चल न पाएगा, मुझे यकीन था,
बाद इसके भी
मगर हरेक लम्हा उसके साथ का
बहुत हसीन था!
ज’रूरी नहीं कि
ज़िंदगी में
हर एक काम
मुनाफ़े के लिए ही किया जाए
सिर्फ’ अपने फ़ायदे के लिए ही जिया जाए।
मैं जानता हूँ कि
उसे न ठहरना था और न वो ठहरा
वो पहले से बादल था मैं पहले से सहरा
मगर
आज भी सोचता हूँ कि
सारी ख़ामियां थी उसमें,
मगर वो फिर भी मेरा हुआ था
एक पल के ही लिए सही
उसने मेरे दिल की तह को छुआ था
यही तसल्ली है
यही भरम है
वह किसी का न हो सकता था,
न मेरा हुआ
मैं यह सोचता हूँ
मैं शिद्दत से सोचता हूँ
‘‘एक रोज’ उसे बदल ही जाना था
एक रोज’ मुझे संभल ही जाना था।’’