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समन्दर / पवन कुमार

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एक
मुकम्मल किनारे
की तलाश में
हर रोज
कितने किनारे
बदलता है समन्दर
तमाम
नदियों को
जज्“ब करने के बाद भी
मासूम सा
दिखता है समन्दर।
शाम होते ही
सूरज को
अपनी मुट्ठी में
छुपाकर
सबको
परेशान करता है
समन्दर।
...बड़ा सफ़ेद पोश है
ये समन्दर।
(पुरी के समन्दर से)