Last modified on 1 मई 2013, at 06:49

सिर्फ यादों के सहारे रात दिन / नीरज गोस्वामी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:49, 1 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> सिर्फ या...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सिर्फ यादों के सहारे रात दिन
पूछ मत कैसे गुज़ारे रात दिन

साथ तेरे थे शहद से, आज वो
हो गए रो-रो के खारे रात दिन

कूद जा, बेकार लहरें गिन रहा
बैठ कर दरिया किनारे रात दिन

बांसुरी जब भी सुने वो श्याम की
तब कहां राधा विचारे रात, दिन

आपके बिन जिंदगी बेरंग थी
अब धनक के रंग सारे रात दिन

है बहुत बेचैन बुलबुल क़ैद में
आसमाँ करता इशारे रात दिन

लौट आएंगे वो “नीरज” ग़म न कर
खो गये हैं जो हमारे रात दिन