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चुपचाप प्यार / लाल्टू

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चुपचाप प्यार आता है.

आता ही रहता है निरंतर हालांकि हर ओर अंधेरा धूप भरी दोपहर में भी शिशु की शरारती मुस्कान ले बार-बार चुपचाप प्यार आता है.

रेंग के आता ऊपर या नीचे से शरीर पर मन पर चढ़ जाता जहाँ कहीं भी बंजर, सीने में खिल उठता कमज़ोर दिल की धड़कनों पर महक बन छाता है.

बेवजह आते हैं फिर जलजले आती है चाह फूल पौधों हवा में समाने की, अंजान पथों पर भटका पथिक बन जाने की ओ पेड़, ओ हवाओं, मुझे अपनी बाहों में ले लो मैं प्रेम कविताओं में डूब चला हूँ

आता है बेख़बर बेहिस प्यार जब पशु-पक्षी भी सुबकते हैं सुख की सिसकियों में बार-बार चुपचाप प्यार आता है.